Principal
डॉ.सुबाष चंद्र यादव
प्राचार्य
नार्जन श्रेष्ठ पुरुषार्थ है। लोकोपकारी प्रवृत्तियों का नार्जन श्रेष्ठ पुरुषार्थ है। लोकोपकारी प्रवृत्तियों का सृजन, अध्यात्म सम्पदा का रक्षण विद्या तत्व द्वारा ही सम्भव है। अतः अध्ययन-अध्यापन द्वारा विद्या तत्व को संरक्षित और चैतन्य रखा जा सकता है। शिक्षित व्यक्ति ही अपने समाज का व राष्ट्र का सर्वांगीण विकास कर सकता है। विभिन्न कालों में शिक्षा के उद्देश्यो के परिवर्तन के साथ-साथ उसके स्वरूप में भी परिवर्तन हुआ है। आधुनिक काल में व्यक्ति का सर्वांगीण विकास शिक्षा का उद्देश्य है इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षण व पाठ्य सहगामी क्रियााओं के संचालन हेतु महाविद्यालय में संसाधन एकत्रित किए गये है, जिससे छात्र/छात्राओं का सर्वांगीण विकास हो सके, व वे सफलता अर्जित कर सके। महाविद्यालय में शिक्षण कार्य लोकतात्रिक पद्यति पर आधारित है, जिससे बालक/बालिकाएं तर्कषील बन सके। मै यह भी आष्वस्त करना चाहता हूँ कि इस महाविद्यालय में आपके पाल्य/पाल्या का भविष्य पूर्णरूपेण सुरक्षित है।